आओ फिर से दिये जलाएं…दिवाली पर क्यों याद आ रही हैं अटल की कविताएं? इन्हें सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है.

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अटल बिहारी वाजपेयी की कविताएँ: पूर्व प्रधान मंत्री की गहन कविताएँ हमारी स्मृतियों में बनी हुई हैं, और हम उन्हें विभिन्न कारणों से याद करते हैं। आज दिवाली के इस शुभ अवसर पर, उनकी दिवाली-थीम वाली कविताएँ खूबसूरती से साझा की गई हैं।

आज देशभर में धूमधाम से दिवाली मनाई जा रही है. लोग सुबह से ही तैयारियों में जुट गए हैं- कोई अपने घरों की साफ-सफाई में तल्लीन है तो कोई उन्हें दुल्हन की तरह सजाने में। दिल्ली और मुंबई जैसे महानगर प्रदूषण की पाबंदियों के बीच आतिशबाजी पर प्रतिबंध के साथ दिवाली मनाएंगे। दिवाली की तैयारियों के बीच सोशल मीडिया पर एक और मुद्दा छाया हुआ है- देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविताएं. अपनी ओजस्वी कविताओं के लिए मशहूर अटल जी की दिवाली थीम वाली कविताएं रोशनी के इस त्योहार पर खूब शेयर की जा रही हैं। इस दिवाली उत्सव पर उनकी लिखी कविताओं पर एक नज़र डालें।

उस रोज दीवाली होती है….

जब मन में हो मौज बहारों की
चमकाएँ चमक सितारों की,
जब ख़ुशियों के शुभ घेरे हों
तन्हाई में भी मेले हों,
आनंद की आभा होती है
उस रोज़ ‘दिवाली’ होती है ।

जब प्रेम के दीपक जलते हों
सपने जब सच में बदलते हों,
मन में हो मधुरता भावों की
जब लहके फ़सलें चावों की,
उत्साह की आभा होती है
उस रोज़ दिवाली होती है ।

जब प्रेम से मीत बुलाते हों

दुश्मन भी गले लगाते हों,
जब कहीं किसी से बैर न हो
सब अपने हों, कोई ग़ैर न हो,
अपनत्व की आभा होती है
उस रोज़ दिवाली होती है ।

जब तन-मन-जीवन सज जाएं
सद्भाव के बाजे बज जाएं,
महकाए ख़ुशबू ख़ुशियों की
मुस्काएं चंदनिया सुधियों की,
तृप्ति की आभा होती है
उस रोज़ ‘दिवाली’ होती है .

आओ फिर से दीया जलाएं…

भरी दुपहरी में अँधियारा
सूरज परछाईं से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-

बुझी हुई बाती सुलगाएँ
आओ फिर से दीया जलाएँ

हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल
वर्तमान के मोहजाल में-
आने वाला कल न भुलाएँ
आओ फिर से दीया जलाएँ

आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियाँ गलाएँ
आओ फिर से दीया जलाएँ

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